Wednesday 26 April 2023

माउण्डा-मांडोली के युद्ध में जयपुर रियासत की ओर से फागी तहसील के छोटे से राजावतों के ठिकाणे सिरस्या से पूजनीय रणसिंह जी राजावत व अन्य राजपूत योद्धा

आज से लगभग 250 साल पहले सन् 1767ई. में जयपुर रियासत की ओर से फागी तहसील के छोटे से राजावतों के ठिकाणे सिरस्या से पूजनीय रणसिंह जी राजावत व अन्य राजपूत योद्धा भरतपुर के खिलाफ हुए माउण्डा-मांडोली के युद्ध में गए थे।

उनमें से अधिकतर योद्धा युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। माउण्डा-मांडोली युद्ध के दौरान रणसिंह राजावत अपने प्रचण्ड राजपूती शौर्य और पराक्रम का परिचय दे रहे थे तभी अचानक रणसिंह राजावत का सिर युद्ध करते हुए धड़ से अलग हो गया था, परन्तु इसके बाद भी उनका धड़ युद्ध लड़ने से रुका नहीं और वह कई घंटों तक युद्ध लड़ते रहे और सैंकड़ों दुश्मनों को उन्होंने मौत के घाट उतारा था।

इस प्रकार सिर के धड़ से अलग हो जाने के बाद भी वे काफी घंटों तक रणसिंह राजावत क्षत्रिय जूंझारों की भांति लड़ते हुए दुश्मनों पर काल की तरह टूट पड़े थे और सैंकड़ों दुश्मनों का खात्मा कर दिया था। माउण्डा-मांडोली के इस महायुद्ध में जयपुर रियासत की विजय हुई थी। इस युद्ध के बारे में कहते हैं कि एक ही परिवार की तीन-तीन पीढ़ियां वीरगति को प्राप्त हो गई थी और 

जयपुर रियासत में संभवत: ही ऐसा कोई ठिकाणा बचा होगा जो इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त न हुआ हो। इसी युद्ध में जयपुर रियासत के एक छोटे से ठिकाने सिरस्या के भी 4-5 राजपूत वीर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। युद्ध में राजपूतों को विजयश्री मिलने के बाद रणसिंह राजावत को उनका स्वामीभक्त अश्व(घोड़ा) युद्ध स्थान से अपने ठिकाने सिरस्या की ओर लेकर आ गया। गांव में आने तक रणसिंह राजावत का शरीर सचेत था।

संवत् 1824 (सन् 1767) पौष सुदी एकम का दिन था सूरज भगवान निकल रहे थे, उसी दौरान रणसिंह राजावत क्षात्र धर्म को निभा कर मां के दूध का कर्ज चुका कर ठिकाने सिरस्या के इतिहास में सदियों तक अपना नाम अमर करके गांव आ रहे थे। एक तरफ सूर्य भगवान निकल रहे थे तो दूसरी ओर राजपूतों का सूर्य रणसिंह राजावत गांव में प्रवेश कर रहे थे। गांव में प्रवेश करते समय रणसिंह जी को किसी ग्रामीण ने बिना सिर के देखकर टोक दिया कि बिना सिर का आदमी आ रहा है। तभी रणसिंह राजावत ने उसी समय गांव में स्थित एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे अपने प्राण त्याग दिए और राजपूताने का एक सूर्य रणसिंह राजावत अस्त हो गए। 

रणसिंह राजावत ने जहां अपने प्राण त्यागे उस स्थान उनका पर एक भव्य मंदिर हैं और इनकी पूजा इन्हीं के वंशज दुर्जनसिंह राजावतों द्वारा की जाती है। आस-पास के ग्रामीण लोग रणसिंह राजावत में खूब आस्था रखते है।

डॉ पुरेंद्र सिंह पिचानोत
ठिकाना कैरवाड़ा अलवर 

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