Wednesday 19 April 2023

क्षत्रिय

क्षत्रिय (पालि रूप : खत्तिय) हिंदू समाज के चार वर्णों में से एक वर्ण है। संस्कृत शब्द 'क्षत्रिय' का प्रयोग वैदिक काल के समाज के संदर्भ में किया जाता है जिसमें सदस्यों को चार वर्णों द्वारा उल्लिखित किया जाता था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

क्षत्रिय वर्ण के लोगों का काम गाओं,कबीलो व राज्य की रक्षा करना था मनु के अनुसार इस वर्ण के लोगों का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान और यज्ञादि करना तथा विषयवासना से दूर रहना है। वशिष्ठ ने इस वर्ण के लोगों का मुख्य धर्म अध्ययन, शस्त्राभ्यास और प्रजापालन बतलाया है। वेद में इस वर्ण के लोगों की सृष्टि प्रजापति की बाहु से कही गई है।

क्षत्रिय वर्ण के कर्तव्य गीताभाष्य और भगवत गीता में उल्लिखित है। रुद्र अष्टाध्यायी में भी पुरुष सूक्त में चारों वर्गों की उत्पत्ति नारायण के विभिन्न अंशों से हुयी उल्लिखित है वेद में जिन क्षत्रिय वंशों के नाम हैं, वे पुराणों में दिए हुए हैं। पुराणों में क्षत्रियों के चन्द्र वंश, अग्नि वंश ( पृथ्वीराज चौहान) और सूर्यवंश तीन ही वंशों के नाम आए हैं 

दिनेश प्रसाद सकलानी के अनुसार स्मृतियों में कुछ युद्धपरक जनजातियाँ क्षत्रिय वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित की गई परंतु इन्हें राजसिंहासन का अधिकार नहीं।

उत्पत्ति
'क्षत्रिय' शब्द का उद्गम नारायण के बाहुओं से है।

रघुवंशम् में राजा दिलीप, सिंह से कहते हैं-

क्षतात्किल त्रायत इत्युदग्रः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः ।
राज्येन किं तद्विपरीतवृत्तेः प्राणैरुपक्रोशमलीमसैर्वा ॥ २-५३॥
अर्थ - क्षत्रिय शब्द की संसार में प्रचलित जो व्युत्पत्ति है वह निश्चित ही 'क्षत अर्थात् नाश से जो बचावे' (क्षतात् त्रायते) है। अतः उस क्षत्र शब्द से विपरीत वृत्ति वाले अर्थात नाश से रक्षा न करने वाले पुरुष के राज्य और अपकीर्ति से मलिन हुए प्राण ये दोनों व्यर्थ हैं।


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